निशिकांत दुबे के बयान पर अवमानना कार्यवाही की मांग!

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर दिए विवादास्पद बयानों के बाद अवमानना कार्यवाही की मांग तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी को पत्र लिखकर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट, 1971 की धारा 15(1)(b) और सुप्रीम कोर्ट के 1975 के नियम 3(c) के तहत दुबे के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति मांगी है।
पत्र में क्या कहा गया?
पत्र में अनस तनवीर ने दुबे के बयानों को “अपमानजनक, भ्रामक और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला” बताया। उन्होंने लिखा:
- दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर संसद के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण और देश में अराजकता फैलाने का आरोप लगाया।
- सांसद ने सुप्रीम कोर्ट पर मंदिरों से कागजात मांगने और मस्जिदों को छूट देने का सांप्रदायिक आरोप लगाकर समाज में अविश्वास फैलाने की कोशिश की।
- दुबे ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का नाम लेकर उन्हें देश में “गृह युद्ध” के लिए जिम्मेदार ठहराया।
वकील ने तर्क दिया कि ये बयान कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट, 1971 की धारा 2(c)(i) के तहत अवमानना के दायरे में आते हैं, क्योंकि ये सुप्रीम कोर्ट की साख को कम करते हैं।
बयानों का संदर्भ
19 अप्रैल 2025 को दुबे ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट “धार्मिक युद्ध भड़का रहा है” और “अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है।” उन्होंने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 और समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने (धारा 377) जैसे मामलों में कोर्ट के फैसलों पर सवाल उठाए। दुबे ने यह भी कहा कि अगर कोर्ट को कानून बनाना है, तो संसद और विधानसभाएं बंद कर देनी चाहिए।
अन्य याचिकाएं और प्रतिक्रियाएं
- अमिताभ ठाकुर की याचिका: उत्तर प्रदेश के पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने भी सुप्रीम कोर्ट में दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की है और अटॉर्नी जनरल को अनुमति के लिए पत्र लिखा है।
- विपक्ष का रुख: कांग्रेस, आप, और एआईएमआईएम ने दुबे के बयानों की निंदा की। आप नेता प्रियंका कक्कर ने सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने की मांग की। कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने इसे “संविधान का उल्लंघन” बताया।
- बीजेपी की सफाई: बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा कि दुबे के बयान उनके निजी विचार हैं और पार्टी इनका समर्थन नहीं करती।
कानूनी प्रक्रिया
कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट, 1971 के तहत, निजी व्यक्ति द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने के लिए अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की सहमति आवश्यक है। सहमति मिलने पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई शुरू कर सकता है। यदि कोर्ट स्वत: संज्ञान लेता है, तो सहमति की जरूरत नहीं होती।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
दुबे के बयानों ने सोशल मीडिया, खासकर एक्स पर, तीखी बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे न्यायपालिका पर हमला बता रहे हैं, जबकि अन्य इसे कोर्ट की जवाबदेही पर सवाल उठाने की कोशिश मानते हैं। यह विवाद सरकार और न्यायपालिका के बीच तनाव को और गहरा सकता है, खासकर जब वक्फ अधिनियम जैसे संवेदनशील मुद्दे कोर्ट में हैं।
निष्कर्ष
निशिकांत दुबे के बयानों ने सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर सवाल उठाए हैं, जिसके चलते अवमानना कार्यवाही की मांग जोर पकड़ रही है। अटॉर्नी जनरल की सहमति और सुप्रीम कोर्ट का रुख इस मामले में निर्णायक होगा। यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
रिपोर्ट :सुरेंद्र कुमार
