मधुर मधुर जल दीप पतंगा

मधुर मधुर जल दीप पतंगा,
खुद ही जान लुटाएगा।
प्रेम करो निस्वार्थ भाव से,
सबको ये सिखलाएगा।।

माना खुद ही जान गँवाना,
नहीं अक्ल की बात है।
जीवन है दो चार दिनों का,
जन्म ईश सौगात है।।

कितना भी हो कठिन समय,
तुम अपना धीरज मत खोना।
हो जाए गलती तुमसे,
तुम फूट-फूट कर मत रोना।।

जीवन है वरदान प्रभु का,
खुश होकर इसको जीना।
जो भी हो जैसा भी हो,
चौड़ा रखना अपना सीना।।

सबसे प्रेम करो लेकिन तुम,
मोहपाश में मत बँधना।
सत्य और न्याय के पथ से,
नहीं तनिक भी तुम डिगना।।

त्याग वही उत्तम जिसमें,
हित निहित रहे जग प्राणी का।
सुखमय सब संसार रहे,
जब मृदुल भाव हो वाणी का।।

बनकर दीप जगत उजियारा,
करना अपना ध्येय हो।
कर्म साधना निश्छल मन से,
जीवन में जो श्रेय हो।।

बड़े भाग्य से मानव का ये,
देह मिला संसार में।
फलित इसे करना तुम बन्धु,
नित अपने व्यवहार में।

डाॅ०(कु०)शशि जायसवाल

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