अपनेपन_से_पाकर_ठोकर_!
मूक चीख बन जाती है,
पीड़ा मन की सीमित होकर !
आँचल के झीनेपन में ही,
कुछ आँसू सूख रहे नित रोकर !
वेदना को करती है जीवित,
ध्वनियाँ वो अमिट असह्य बनकर !
अनुभूति का घेरा स्याह हुआ ,
अपनेपन से पाकर ठोकर !
@_वंदना
#सर्वाधिकार_सुरक्षित
अहमदाबाद